तृप्त
तृप्त
आज जब ये बरसात हो रही है ना,
आओ न, क्यो न हम दोनों इन बूूंदों को
हथेलियों में भरलें।
गिने एक, दो, तीन
पड़े रहे ज़मीन परऔर अधखुली
आंंखों से देखते रहे आसमान को,
और कहे कि बरसते रहो तप्त है हम।
आज जब ये बरसात हो रही है ना,
आओ न, क्यो न हम दोनों इन बूूंदों को
हथेलियों में भरलें।
गिने एक, दो, तीन
पड़े रहे ज़मीन परऔर अधखुली
आंंखों से देखते रहे आसमान को,
और कहे कि बरसते रहो तप्त है हम।