तराना तेरे लिए
तराना तेरे लिए
दूर उफ़क़ पे छाई हुई मुझको दिख गई शफ़क़,
मानो, उनकी उनींदी अधखुली दिख गई पलक!
माना हैं वो दूर मुझसे मिलने का कोई चारा नहीं,
वो आये रूबरू, दिल में दबी, दिख गई कसक!
कहीं देखे काले नागिन से लहराते गेसू तो सोचा,
कि, या तो ये ख़याल है या तुम, दिख गई बेशक़!
अब, न ये दिल धड़कता है, न ये साँसें चलतीं हैं,
तुम इस ज़िस्म से जान, माँग के ले गई, ब-हक़!
अब तो साँसों में उबाला आता है, तेरे नाम से ही,
महफ़िल सज गयी है, यादों की तेरी, शाम से ही!