तपस्या
तपस्या
कितना आसान होता है एक पुरुष का
दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर तपस्या पर चले जाना,
सिद्धार्थ तो अपनी गृहस्थी छोड़कर महात्मा बुद्ध बन गये
पर यही यशोधरा करतीं तो क्या ये समाज उन्हे
एक तपस्वनी मान पाता?
क्या वो बच्चा राहुल जिसे एक बाप ने
अपनी मन की शांति के लिऐ छोड़ दिया था
वो बच्चा अपने पिता की तरह मां को माफ कर पाता?
इतने बरस बीत गये पर क्या बदला है आज भी
पुरुष आज भी स्वतंत्र है अपनी खुशी अपनी शांति के लिऐ
निर्णय लेने को,
पर स्त्री आज भी करती है दूसरों की खुशियों के लिऐ तपस्या।