तोहफा
तोहफा
"जन्मदिन पर मेरे न देती तुम तोहफा",
सुन बेटे के ये शब्द विधवा माँ हुई ख़फ़ा।
दफन कर दी अपनी सारी इच्छा, अपनी सारी रजा,
जीकर विधवा का जीवन, न जाने काट रही वो कौन सी सजा।
आखिर दो साल बाद,
कर रही फिर उसी दिन को याद,
जब सज-धज कर अपने पति का कर रही थी इंतजार,
जन्मदिन पर उसके मिलेगा कौन सा उपहार,
बस इसी बात का कर रही थी विचार,
इतने में आया एक दुखद समाचार,
शराब पीकर हद से पार ,
मरा उसका पति बीच-बाजार,
सुन ये बात उड़ा उसके चेहरे का निखार,
अपने शौक को करने के लिए साकार,
उसके पति ने लिया था बहुत सारा उधार,
ऐसे आदमियों पर तो है धिक्कार,
मरने के बाद पत्नी को किया शर्मसार ।
अब उसके बेटे के जन्मदिन को दिन बचे थे चार,
" महंगा तोहफा चाहिए", ये बेटे की पुकार,
कुछ दिनों बाद वह हृदय-रोग का हुआ शिकार,
हृदय प्रत्यारोपण की हुई उसे दरकार,
एक बार माँ हुई फिर लाचार।
पहले खो दिया पति, अब खो देगी बेटा,
न जाने उस माँ ने वह दुःख कैसे समेटा,
वेदना से ग्रस्त शरीर पर संयम की चादर को लपेटा।
बेटे को लगा जिन्दगी के घंटे बचे है चंद,
जैसे ही उसने अपनी आँख करी बंद,
एक विचार करने लगा उसे तंग-
"क्या कल अपने जन्मदिन का मैं ले पाऊंगा आनंद?",
लेकिन अगली सुबह किसी ने भर दिए उसकी जिन्दगी में रंग।
आखिर कौन है इतना महान?
किसने किया अपने हृदय का दान?
इसका जवाब तो है बहुत आसान,
माँ से ज्यादा परोपकारी न कोई इंसान।
समझ में आया बेटे को कि माँ तो थी भगवान तुल्य,
जन्मदिन पर दे गयी उसे तोहफा अमूल्य।
जान गया वह की जान से बढ़कर ,
उसे प्यार करती थी माँ ,
अपने बेटे का पेट भर कर,
खुद भूखी सोती थी माँ।
उनके आखिरी पलो में, वह माँगना चाहता था क्षमा,
पर रोते-बिलखते उसके मुंह से केवल निकला-" वापिस आ जाओ मेरी माँ...."।