तन्हाई
तन्हाई
वो जो दूर बैठी है
मेरी तन्हाई है
लोग आते हैं और चले जाते हैं
पर ये दिल की परछाई है
हर रोज ढलते दिन के साथ
परछाई की तरह बढ़ती है
पहले दिल को गिरफ्त में लेती है
फिर जेहन में चढ़ती है
ज्यों शाम गहराती है
ये और भी बढ़ती जाती है
गुज़रे हुए लम्हों की
बारात सी निकली जाती है
पर शिकवा नहीं है उस से
ना ही कोई अदावत है
मिलवाती है रोज़ उनसे
जो मेरे दिल की चाहत है
फिर आज अपने साथ
यादों की बारात ले आयी है
वो जो दूर बैठी है ना
मेरी तन्हाई है