तमन्ना...
तमन्ना...
डूब के जाने की तमन्ना है मुझे
दरिया-ए-दिल में...
रफ्ता-रफ्ता तन्हाईयों में मेरी आवाज़
दब के रह जाती है मगर...!
उन गुज़रे पलों की बेपनाह रहगुज़र में
दास्तान-ए-ज़िन्दगी मेरी कहीं गुम होकर रह जाती है...!
और बहुत हैं मुश्किलें खड़ी मेरे दिल के मैखाने में...
जो मैं जाम-ए-दर्द पीये जाता हूँ...!

