तलाश
तलाश
बुजुर्गों की सीख का इन्दु, तलबगार नहीं है
खालिस माल का यहाँ, खरीददार नहीं है।
मुसाफिर साथ चाहे, ढूंढ ले रहगुजर दूजा
पुरानी राह पर इन्दु , हमराह नहीं है ।
प्रीत की बातें ना कर, इन्दु नव युग आया है
मीरा और सूर की इन्हें, दरकार नहीं है।
व्यंग है, हास्य भी है, अहंकार भी है वाणी में,
काव्य धारा में इन्दु अलंकार नहीं है।
जोश का बाजार बड़ा गर्म है इन्दु यहाँ,
होश में आए ऐसी, सरकार नहीं है।
कहने को कवि सम्मेलन, करते हैं कराते लोग,
कवियों के लिए इन्दु, कोई दरबार नहीं है।
परेशान न हो इन्दु, कलयुग हुआ भारी बड़ा
सतयुग-सा अब कोई, घर बार नहीं है।
उस गली का दावेदार, हर कोई है सनम,
जिस गली में इन्दु जमींदार नहीं है।
आ चल कोई नया, जहाँ तलाश लें इन्दु,
इस शहर मकी अब तू दावेदार नहीं है।