मै केवल देह नहीं, मै जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ---। मै केवल देह नहीं, मै जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ---।
समझ कुदरत के इशारों को लापरवाही ज़रा छोड़ दे समझ कुदरत के इशारों को लापरवाही ज़रा छोड़ दे
व्यंग है, हास्य भी है, अहंकार भी है वाणी में, काव्य धारा में इन्दु अलंकार नहीं है। व्यंग है, हास्य भी है, अहंकार भी है वाणी में, काव्य धारा में इन्दु अलंकार नह...
अब चिंगारी तो सुलगी है अपने आत्मसम्मान बचाने की वो आग भी बन जायेगी! अब चिंगारी तो सुलगी है अपने आत्मसम्मान बचाने की वो आग भी बन जायेगी!