पुरुष प्रधान
पुरुष प्रधान
सीना ठोक कर कहते हैं पुरुष
कि मैं उस देश का नागरिक हूं जहां
का समाज पुरुष प्रधान है,
चलेगी स्त्रियों पर उसकी हुकूमत
क्योंकि वो ही उनका दावेदार हैं ।"
भूल जाते हैं वो कि जिस सीने को वो ठोक रहे हैं
वो एक स्त्री की ही देन है।
जो करते हैं हुकूमत वो स्त्री की चुप्पी की देन है।
एक बार जो हर स्त्री ने सहना छोड़ दिया
चुप रहने की जगह कहना शुरू किया,
उसी दिन उसी वक्त ये तख्ता पलट जायेगा
फिर कौन कितना किसका दावेदार है ये उन्हे पता चल जायेगा।
अब चिंगारी तो सुलगी है अपने आत्मसम्मान बचाने की
वो आग भी बन जायेगी,
जिसमें झुलस बहुत जल्द पुरुषों को अपनी जगह पता चल जायेगी।