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तकरार

तकरार

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क्या कहूँ जब पापा और माँ झगड़ रहे थे,

बिजली कड़क रही थी,बादल गरज रहे थे।


जमने की थी बस देरी, औकात की लड़ाई,

बेचारे पूर्वजों के, पुर्जे उखड़ रहे थे।


इधर से दनादन थप्पड़, टूटी थी चारपाई,

उधर से भी तो चौकी, बेलन बरस रहे थे।


अरमान दुश्मनों की, सुनी पड़ी थी कब से,

बारिश जो रही थी, वो भीग सब रहे थे।


मिलता जो हमको मौका, लगाते हम भी चौका,

बैटिंग तो हो रही थी, हम दौड़ बस रहे थे।


बहादुरों के बच्चे, आखिर में सीखते क्या,

दो चार हाथ को बस, हम भी तरस रहे थे।


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