STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

"तकनीकी"

"तकनीकी"

1 min
30


आजकल जो चल रही है,यह तकनीकी

रिश्तों की चाय करने लगी है,बहुत फीकी

जैसे हम मोबाइल पर ही बहस करे,तीखी

उसने लील ली,हर रिश्ते की आवाज,मीठी


ऐसे पहले भेजते थे,एक दूसरे को चिट्ठी

संदेश भेजना हुआ,कॉपी,पेस्ट की नीति

जिनमें थी कभी मन से लिखी बातें अनूठी

अब न रही,मौलिकता न रही,यादें मीठी


पहले तो फोन नम्बर भी रहते थे,याद दीदी

पर इस आधुनिकता से स्मृति हमारी मिटी

आज तो,खुद के नम्बर की भी हुई,विस्मृति

ऐसे शारीरिक खेलों को लील गई,तकनीकी


मैदान नही,मोबाइल में,बच्चों की मौजूदगी

यदि न दे,मोबाइल हो जाती,हिंसक नीति

तकनीक उतना काम ले,कहता हूं,बात टूटी

इस तकनीकी ने बना दे,हमे इंसान से चींटी


बिन

इसके सहारे,हुए बिना पंख तितली

अत्यावश्यक हो तो ही काम ले,तकनीकी

बाकी छोड़ दे,इसकी बाते सब ही है,झूठी

इस तकनीक से किस्मत गई,हमारी फूटी


हर रिश्ते से निकाली,इस तकनीक ने चीनी

इसने हमे पंगु कर दिया,देकर बैसाखी टूटी

भरी महफ़िल में,हमें अकेला करती,तकनीकी

जैसे किसी मानसिक रोग की बने हम,मिट्टी


बिना बात जेब से मोबाइल की बजाते,सिटी

जैसे ये मोबाइल हमारे लिए हो,संजीवनी-बूटी

न जाने कहाँ ले जायेगी,हमको यह तकनीकी

आओ याद करे,हम लोग वो सब ही बातें,बीती


जिनमे सच मे हमारी यह जिंदगी थी,जीती

तकनीक प्रयोग कम करे,जीवन सुखद करे

कम तकनीक से दूर करे,हम जीवन गरीबी

सच्चे रिश्तों में काम आती,बस सच तकनीकी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract