STORYMIRROR

Chitra Chellani

Classics

4  

Chitra Chellani

Classics

तकदीर

तकदीर

1 min
299

साँसों के आने जाने में 

अपनों के ताने बाने में 

उम्मीदों और जिम्मेदारी के दोहरे भँवर से 

लम्हों के गुज़र जाने में 


कब दिन ढला ... कब रात हुई ...

महसूस तो नहीं होता 

पर कभी अचानक जब ...

एक पल के लिए भी 

खामोशी के बादलों में


धुंधलाता है ज़िन्दगी का कोलाहल 

और साथ होती है अपने बस तन्हाई 

तब...तड़पता है दिल मेरा 


सिसकता है तेरी ख़ातिर 

बहाता है कई आँसू 

पूछता है कई सवाल 

और माँगता है ... बस एक दुआ 

कि काश किसी कब्र पे ...

खुदा हमारा भी नाम लिख दे 


पर शायद इसी का नाम

तक़दीर है कि ये साँसें ...

रुकने का नाम ही नहीं लेतीं। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics