तकदीर
तकदीर
साँसों के आने जाने में
अपनों के ताने बाने में
उम्मीदों और जिम्मेदारी के दोहरे भँवर से
लम्हों के गुज़र जाने में
कब दिन ढला ... कब रात हुई ...
महसूस तो नहीं होता
पर कभी अचानक जब ...
एक पल के लिए भी
खामोशी के बादलों में
धुंधलाता है ज़िन्दगी का कोलाहल
और साथ होती है अपने बस तन्हाई
तब...तड़पता है दिल मेरा
सिसकता है तेरी ख़ातिर
बहाता है कई आँसू
पूछता है कई सवाल
और माँगता है ... बस एक दुआ
कि काश किसी कब्र पे ...
खुदा हमारा भी नाम लिख दे
पर शायद इसी का नाम
तक़दीर है कि ये साँसें ...
रुकने का नाम ही नहीं लेतीं।
