तिश्नगी और बैरी चाँद
तिश्नगी और बैरी चाँद


खामोश रात है उदास बैरी चाँद
ये सुनसान फिजायें हैं
छिटके छिटके से आँसू हैं
तरसती हुई निगाहें हैं
अकेली हूँ तेरे जाने के बाद
तेरा साया मेरी पनाहें हैं
इक शब्द निकलते हैं
लाख होंठों पर आहें
बड़ी मनहूस है दोपहर
कैसी सर्द हवाएं है
अपने कमरे में हर तरफ
हमने तेरी तस्वीर सजायें हैं
तिश्नगी में डूबे होंठ
मचलती हुई सी बाहें हैं
तेरे कपड़ों से लिपट कर
हम तेरी खुशबू में नहाएं हैं
देखे तुझे तो दिल पर रखें हाथ
मर मिटे कोई ऐसी अदायें हैं
लग जाये उम्र मेरी तुझको
अपनी बस यही दुआयें है