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Neetu Singh Chauhan

Drama

3  

Neetu Singh Chauhan

Drama

तिरंगे को कफन अपना..

तिरंगे को कफन अपना..

1 min
381


वतन के लिए सदा ही काम आना चाहती हूँ मैं

दिलोजां को वतन पर अब लुटाना चाहती हूँ मैं।

समूचा देश दे मुझको सलामी बाद मरने के

तिरंगे को कफन अपना बनाना चाहती हूँ मैं।


जिस्म छलनी हुआ, रूह सिसकती रही

लम्हा-लम्हा कली निज बिखरती रही।

हवस की आग से क्रूर मानव हुआ

बेबसी में हया नित पिघलती रही।


नन्हें हाथों में मजदूरी का बोझ कभी सोचा न था

युवाओं में बेहयाई का ये आलम कभी सोचा न था।

अपनों ने यूं किया जिंदगी में साजिशों का सिलसिला

होगा दोस्ती के हाथ में खंजर कभी सोचा न था।


बताये क्या मुहब्बत के अजब खेल सारे हैं

चुभोते शूल वो दिल में हमें जो जां से प्यारे हैं।

लुटाकर जिंदगी सारी जो आए हैं मेरे हिस्से

वही झूठे भ्रम अब सिर्फ जीने के सहारे हैं।


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