तिलिस्मी ख्वाब
तिलिस्मी ख्वाब
समंदर से मोतियों को खोजना है
तो समंदर की तह तक जाना होगा
मेरे अल्फाजों को समझना है
तो खुद से परे जाना होगा
गर करना है ख्यालों को तक्सीम
राब्ता अपने दिल का बढ़ाना होगा
ख़रोंचें आज भी लगती है बदन पर
हमें अल्फाजों पर यूं न इतराना होगा
गर है उम्मीद, तो रास्ते भी बदल जाएंगे
बीच समंदर से मोती भी निकल आएंगे
तू यूं ही टकराने की कोशिश ना कर
ये उछलते सैलाब ही तेरे लिए रास्ता बनाएंगे
चलती है हवा तूफ़ानों सी, तो चलने दे
पर उम्मीद का दिया तुझे ही जलाना होगा
हर आरज़ू तेरी दस्तरस में है आख़िर
बशर्ते राज़ जीने का तुम्हें संभालना होगा
टूटा हुआ शीशा तो काट देता है
धड़कनों को वफ़ा की राह में बांट देता है
उल्टी पड़ी है कश्तियां आज भी रेत पर
लगता है किसी ने मेरा दिल-ए-समंदर निकाला होगा
गर बदनाम करना है तो कर मुझे वफ़ा की राह में
पर वादा है, मेरा तुझको ही मुझे मनाना होगा
डालियों के कटने से परिंदे उड़ा नहीं करते
गर डरते तो फिर तुझसे मोहब्बत नहीं करते
आँखों से गुफ्त़ुगू रोज होती है उनसे
मुद्दतों के बाद मिलन का सामना भी होगा
हासिल कर ही लूंगा मंजिल एक न एक दिन
ख़ामोशी कोई ज़हर नहीं जो मुझे पीना होगा।
नायाब तिलिस्मी ख्वाबों का सैलानी हूं मैं,
वफा-ए-इश्क की उस मुरत को रू-ब-रू आना ही होगा।
*(तह- भीतर, तक्सीम-बांटना, राब्ता-दीवानगी, आरज़ू-ख्वाहिश, दस्तरस - हाथ की पहुँच, बशर्ते-शर्त के अनुसार, राज़-भेद, वफ़ा-मोहब्बत, गुफ़्तुगू- बातचीत, मुद्दतों-बहुत इंतजार के बाद, मिलन-मुलाकात, ज़हर-विष, नायाब-बहुत बढ़िया,श्रेष्ठ, तिलिस्मी-जादुई, सैलानी-सैर करने वाला, मुरत-मूर्ति, रूबरू-आमने-सामने, समक्ष)*