STORYMIRROR

Alpa Mehta

Abstract

4  

Alpa Mehta

Abstract

तेरी सूरत मेरी आँखे..

तेरी सूरत मेरी आँखे..

1 min
444

तेरी सूरत मेरी आँखे,

देखकर ये नज़ारे,

नज़ारे भी सुना रहे है,

तेरे मेरे इश्क़ के तराने,

हवाओं ने भी क्या,


खूब कमाल किया

वक़्त बेवक्त अपना,

रूख मौड़ लिया,

उड़ ले चली दास्तान मुहबत की,

हर गली, हर शहर किस्सा बाँट चली,

मुहबत का ये सिलसिला,


सरेआम करती रही,

अपने गालों के खंजन,

चितर रही, तो कभी

काजल फैलाती रही,


गुनगुनाती चली पुरवाई,

अब तो जैसे ऋत बसंत आयी,

पपीहा के पीयू पीयू सुनाती रही

मन के हज़ारो पँख से,

अपने साथ उड़ ले चली

एक एहसास।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract