अंतर मन..
अंतर मन..
अंतरमन
पुकारे निशदिन
तू ही तो है मेरा सजन
तुझ प्रेम रस को तरसे अधर,
तुझ प्रेम छाँव को मचले ये मन
यौवन मे बरसेअविरत ज्वाला
तुझ मिलन को प्रज्वले मन की माया
बनी बैसाखी बरस जाऊं
तरस जाऊ, तरस जाऊं
बून्द बून्द बनके सरक जाऊं सरक जाऊं
तुम पर गिर गिर जाऊं
तुझ छुअन से मैं अमृतरस बन जाऊं
बहक जाऊं आज बहक जाऊं।