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Alpa Mehta

Others

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Alpa Mehta

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इन्सान

इन्सान

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तपती रही धूप मे रेत् की तरह

मोह की बंदिशे जलाती रही यहाँ,

इन बंधनो से मुक्त न हो सके इंसान कोई, 

ये गिरफ्त बड़ी मजबूत है, लोहे की सलाखों की तरह

मर रही है इंसानियत इस भंवर के घेरे मे,

ईमानदारी भी जैसे दम तौड़ रही है,

फंसता जा रहा है इंसान दलदल मे यहाँ,

जूझता रहता है संयम,

हर एक इंसान को उजागर करने यहाँ,

पर मिट्टी के मानव अब दानव बन रहे है यहाँ

              

     

        





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