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usha yadav

Tragedy

3  

usha yadav

Tragedy

तेरी परछाई

तेरी परछाई

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सो! हुए तुझे देखे हुए 

अब तो तेरी परछाई को 

भी तरसे हैं हम।

 

मेरी जिंदगी के वह अनछुए 

पहलू हो तुम जिसे पता 

ना था कभी सपनों का टूटना

 

मेरी कविता के हर शब्दों के 

अनसुलझे सवालों से हो तुम


जिसे मेरी हर हकीकत से 

मुंह मोड़ना ही था 


 क्यों चले गए तुम इस तरह 


कुछ कहना था मुझे

कुछ सुनना था मुझे

पर जब तुम ना थे तो 

तुम्हारी इस परछाई ने ही

 मुझे गिर कर भी उठना सिखाया 


काश! तुम तो मेरी अक्स 

भरी तड़प को समझ पाते

 

मोहब्बत में हमारी क्या कमी रह गई 

जो अब तेरी परछाई को तेरा 

प्रतिरूप बनाकर मैंने उसे है अपनाया।



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