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Prerna Karn

Romance

3  

Prerna Karn

Romance

तेरी जरूरत

तेरी जरूरत

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जब भी मुड़कर देखती हूँ पीछे,

दूर-दूर तक कोई नहीं, 

चल-चलकर थक गई मैं,

खुद पर अब कोई जोर नहीं ।


खड़ी हूँ मैं अभी जिस मोड़ पर,

रास्ते कई हैं नजर के आगे,

हूँ असमंजस में, जाऊँ किधर मैं, 

ना दिखता मंज़िल ना कोई भी

संग सफर में ।


ना कोई बेगाना, ना है कोई अपना, 

डर से है मानो जन्मों का रिश्ता, 

ये सच है या है कोई अफसाना, 

या देख रही हूँ मैं कोई सपना ।


सहमी-सी मैं हूँ, घबरायी हुई मैं, 

तुझे याद करके बहुत रोयी हूँ मैं, 

इक तू ही तो था, मेरे साथ खड़ा था, 

मैंने ही तुझ को खुद से दूर किया था।


तुझसे कुछ भी कहना सही नहीं था, 

तेरा इसी में खूब भला था, 

ये सब सोच चुपचाप रह गई, 

तुझसे दूर हुई जो खुद से ही दूर हो गई।


देखा था तुझे जब बरसों बाद मैंने, 

तेरी हालत देख खुद बदहाल हो गई, 

जिम्मेदार थी मैं जो ये न समझी, 

मैं तेरी थी, तू बस था मेरा ।


लोगों की बातों में आकर,

मैंने ये क्या कर डाला ?

पश्चाताप की अग्नि में,

मुझे जलना जरूरी था ।


आज खड़ी हूँ जिस मोड़ पर,

डर लगता है पग बढ़ाकर, 

थक गयी मैं, हार गई मैं,

जिंदगी के इस सफर में ।


ना कोई चाहत अब बसी है दिल में, 

बस तुझे ही रह-रहकर पुकार रही, 

ये मत समझना फिर साथ चाहिए, 

बस इक पल तुझे जी भरकर निहार लूँ ।


हाथ पकड़कर तुझसे है कहना,

इस नाजुक पल में, बस तेरी जरूरत है मुझ को।


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