तेरी आवाज़
तेरी आवाज़
गली से गुज़रते फकीर की पाक सुफ़ियाना धुन सी,
तेरी आवाज़ से पिघलता है मेरे दिल से दर्द का दरिया !
एक पुरसुकून सरगम सी लगती है तेरी आवाज़,
मेरी बेचैन रूह को करिश्माई रोशनी से भरती है !
जब-जब बोझिल लम्हें मुझे घेरते हैं
तब-तब तुम्हारी आवाज़ अपनी आगोश में लेती है।
लब खुलते ही तुम्हारे धड़क चुकती है
दिल की तान लय से फिसलकर !
मेरे रोम-रोम में सारंगी बजती है सुनकर तेरी पुकार
न रहना मौन तुम कभी
तुम्हारी आवाज़ मेरी साँसों का श्रृंगार है,
चलती रहेंगी तब तक
जब तक रस तुम्हारी आवाज़ घोलती रहेगी।