तेरी आदत ही मेरी मौत की वजह है
तेरी आदत ही मेरी मौत की वजह है


सपने खो के भी जिन्दा हूँ मैं
ये भी मेरी तकदीर है।
चीट्ठियों मैं भी नहीं है नाम मेरा
आज तू मुझ से कितनी दूर है।
दिन-रात तुझे ही सोचता हूँ
अपने आप से हो के नाराज़ मैं।
कैसे तुझे बुलाऊँ, कैसे तुझे मनाऊँ
जो आ जाये मेरे पास वो।
मेरी गुस्ताखियों की ऐसी भी सजा होगी
शरीर होगा उसमें ना आत्मा होगी।
कब सोचा था मैंने खोना तुझे
तेरी आदत ही मेरी मौत की वजह होगी।