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संजय असवाल

Abstract

4.7  

संजय असवाल

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तेरा यूं चले जाना ..!

तेरा यूं चले जाना ..!

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तेरा यूं चले जाना

क्या अहमियत रखता है

पूछो मुझसे ये जो सुहाना ख्वाब था

अब टूटा सा लगता है।


बिन तेरे सब 

खाली खाली हो गए

एक अधूरी किताब के 

बिखरे पन्ने हो गए।।


तेरा आंचल 

जो बच्चों से अब छिन गया

आंखों में आंसू

दर्द दिल में बेइंतिहा दे गया।


बिटिया गुमसुम सी 

मुरझाई बैठी रहती है

तेरी यादों में खोई खोई

तस्वीर तेरी सीने से लगाए रहती है।।


सुबकती है 

जब यादों के मंजर उसे घेर लेते हैं

तू हिचकियों में उसके

आस पास जो कहीं होती है।


उस मासूम की मैं क्या बात करूं

तुझे ना पाकर हतप्रद सा रहता है

ढूंढता है तुझे यहां वहां

तेरे बारे में सवाल बहुत करता है।।


उसकी क्या बात करूं

वो जो बावरा सा फिरता है

गुमसुम तेरी तस्वीरों को 

घड़ी घड़ी साफ करता रहता है।


सूना घर जब भी काटने को उसको दौड़ता है

खामोश अपनी धुन में

हर कमरे दरो दीवार में

तुझे ही ढूंढता फिरता है।।


तू गई नू... तो सब बिखर गया

एक लंबी खामोशी दर्द हर ओर छोड़ गया

तूने बसाया था जो सपनों का घर 

यूं तिनके सा क्यों उजड़ गया.....??


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