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Mukesh Kumar Goel

Tragedy

4  

Mukesh Kumar Goel

Tragedy

तबाही!

तबाही!

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ख़ामोशी!

रात की गहराई की,

ख़ामोशी!

अंदर के सन्नाटे की,

मिलकर

हो गयी है एक,

अब न अंदर, न बाहर

कोई हलचल है, न जी कोई शोर,

शांत है अब कुछ,

शांति

तूफ़ान के आने से पहले की,

एक सहन न होने वाली,

ख़ामोशी!

क्या होगा परिणाम,

जब अचानक से,

दबा हुआ जज़्बा,

उठायेगा सिर अपना,

निकलेगा बाहर,

एक तूफ़ान बनकर,

तोड़ देगा सभी सीमायें,

भंग कर देगा,

शांति मन की,

टूट जाएगी ख़ामोशी,

सिर्फ रह जाएँगे,

तबाही के निशान।



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