तारीख़ें बदल रही है
तारीख़ें बदल रही है
उसकी वह 'नज़र'
और उसका मेरे शरीर को छूना
मेरे इनकार पर उसका वह नोंचना
सबकुछ मेरे सोच से परे था
वह मेरा दोस्त था
बचपन से हम साथ साथ रहे थे
लेकिन आज पता नही क्या हुआ
वह मेरे शरीर से खेलकर गया था
कोई दुःस्वप्न ही था शायद
मेरी रूह तड़प उठी
जो आईना मेरी काजल लगी आँखों को देख खुश होता था
आज उस आदमकद आईने ने भी मुझे पहचानने से इनकार कर दिया
उसके 'उस तरह' छूने भर से ही
मेरा शरीर मुझे मेरा क्यों नही लग रहा है?
क्यों यह शरीर गँदला गँदला सा लग रहा है?
शरीर को रगड़ कर साफ करने के बावजूद यह लिजलिजा सा लग रहा है
यह अहसास मुझे मार डालेगा
मेरी रूह जैसे मेरे शरीर से विद्रोह करने लगी है
जैसे मेरी रूह इस शरीर से पीछा छुड़ाना चाहती हो
औरतों के शरीर को नोंचने वाले ये गिद्ध तो फिर मँडराते रहेंगे
लेकिन मेरी ज़ख्मी रूह उन गिद्धों के मंसूबो को कामयाब नही होने देगी
वह इसी शरीर के साथ फिर उड़ान भरेगी
उन रंगबिरंगी तितलियों की तरह फिर से मुस्कुराती रहेगी
और अपनी ख़्वाबों की दुनिया को फिर से मनचाहे रंगों से भर देगी....
