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Mukul Kumar Singh

Tragedy

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Mukul Kumar Singh

Tragedy

स्वतंत्रतोत्तर का हिन्दोस्तान

स्वतंत्रतोत्तर का हिन्दोस्तान

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कसमें खाई थी हमने निर्मित करेंगे अलगाव मुक्त राष्ट्र सम्मान

पर छोड़ न पाया अपनी प्रांतीय पहचान।

गरल रुपी भाषा और धर्म से नागरिक हैं परेशान,सौ करोड़ की जननी भारत है महान।

थी विरासत में सर्वे भवन्तु सुखिन, प्राणों में बसता था परमार्थं मूलमंत्रम जहां गुंजे दधिचि का त्यागी सुरों का संगम,कर धारण हलाहल शंकर कहलाया नीलकंठ ऐसी पुण्य भूमि पर गृहशत्रुओं ने ली भुकुटी तान।

न तो बजी रणभेरी कोई और न निकली तिर-कमान, स्वयं हीं खण्डित हो रहा है सवा सौ कोटि का हिन्दोस्तान।

निज स्वार्थ को गले लगाया राष्ट्रप्रेम पर दे दी एक नई व्याख्यान,लूट-खसोट पर टकराती जाम।

चोरी में पारंगत नेता-जनता बम-गोली की निकली जुबां,कर रही देश को बदनाम।। सीता-काली-दुर्गा पर तुली-कलम चला-चला कर सौहार्द तोड़ते हैं कलाकार,कहे नागरिकों का अधिकार जिनके मार से कैसे बचें कृष्ण-राम।

नारी मुक्ति का ढोल बजा कर, नारियां स्वयं बन गई बाजार, एक-दो हीं आगे आई बाकी से सजी सीनेमा का संसार।

अंग्रेजी-अंग्रेजी पढ़ाकर मातृभाषा को करते हैं बदनाम,कोटी में दो हीं समझे शेष दिखे हैरान। शातीर जाल में फंसकर लड़ते रहते देशी जुबान,छद्म श्रेष्ठता का ढोंग रचा कर करे विदेशियों का गुणगान।

घबड़ाने की कोई बात नहीं अब भी धमनियों में बह रही है पूर्वजों का यशगान,आती है आंधी आने दो सागर में जितना उठे तुफान। जब तक हिमाला-सागर इस धरा को शोभे कभी न मिटेगा हिन्दोस्तान।

अफुरन्त युवा शक्ति से सज्जीत, ज्ञान-विज्ञान से लैस है, पार्थिव तो पार्थिव है महाकाश में विजय पताका लहराएंगे सारी बाधाओं को पराजीत करके स्वतंत्रतोत्तर उन्नत हिन्दोस्तान बनाएंगे।


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