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Maitreyee Kamila

Abstract

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Maitreyee Kamila

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सूखापन

सूखापन

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आज भी सूरज की किरण से हलचल

सूखा डाली पर ओस की बूंदें,

पतझड़ की आने की जिद को,

मैं भला कैसे रोक लूँ,

सर्दी के सुबह नरम धूप से बेखबर पत्ते मेरे।


वे दिन भी क्या दिन थे

हरे भरे पत्ते ,

चिड़िया की चिं चिं बदलता

मौसम से निखरता था चार और नजारा।

रुक जाती थी गाँव की डोली,

थके किसान ले लेते थे सांस भरी दोपहर में।


आज निष्क्रिय शरीर 

देखते ही नजर चुराते है

चांद तारे बिखरते है

मौसम बदलते है

पर मुझमें अब कोई बदलाव नहीं

फकत सूखापन

फकत सूखापन।



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