सुनो मैं नदी हूं, देवी नहीं
सुनो मैं नदी हूं, देवी नहीं
गंगा हूं, यमुना हूं
सरस्वती गोमती हूं
जीवनदायिनी प्रवाही
हाँ मैं नदी हूं
सुन कर मनुज की
हृदय विदार पुकार
छोड़ स्वर्ग के सुख
धरती पर लिया अवतार
सफ़र अपना सुनाऊँ
मेरी कथा सुनोगे
क्या क्या झेला मैंने
बोलो मेरी व्यथा सुनोगे
जब उतरी पहाड़ों से
झूम कर इठलाते हुए
कल कल निर्मल जल
पावन जल से नहलाते हुए
फ़िर जैसे जैसे करीब आती गई
इंसानो की जो बस्ती थी
सारी गंदगी, सारा कचरा खाती गई
मूक हूं, क्या कर सकती थी
किनारों को चीर खुदाई करते रहे
मौन हो मैं देखती रही
वो जबरन मेरी राहें बदलते रहे
चुपचाप मैं सहती रही
सूख जाऊँगी देखना इक दिन
प्रकृति से मत खेलों
जाते हुए कर दूंगी तुम्हें जल बिन
सुधर जाओ सलाह ये ले लो
और हाँ मुझे देवी ना बुलाओ
मुझे श्रद्धा दिखाई नहीं देती
जल का स्त्रोत ही समझ लो
क्या भविष्य की प्यास दिखाई नहीं देती ?
