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Abhishu sharma

Abstract

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Abhishu sharma

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सुकून का बोझ

सुकून का बोझ

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अरे ओ फकीर दिल पर लग रहा है इतना बोझ अगर कि, जीने से मर जाना लग रहा है बेहतर 

अगर वक़्त बेवक़्त परेशान कर देता है यह दिल ऐसे अनगिनत सवाल पूछकर कि

वो जिसे खुदा माना था, जिसके बिना जिंदगी जीने के बारे मैं सोचा तक नहीं था , 

वो बस ऐसे ही कैसे चला गया छोड़कर , तो 

एक प्यारी सी थपकी उसके गालो पर मारकर समझाना उसे की

वह तेरे दुःख का सबब कैसे हो सकता है रे पगले , जो तेरी अब तक की ज़िन्दगी मैं सुकून का कारण हुआ करता था 

बस सिर्फ इसलिए की वह इस वक़्त तेरे साथ नहीं हो सकता तेरे लिए , तूने उसे अपने बोझ का नाम दे दिया 

ज़रा आँखें खोलकर झाँक अपने अंदर , वह तो अभी भी पहली बारिश सा ही महक रहा है तेरे अंदर

पर फिर भी अगर तुझे बोझ ही कहना है तो " सुकून का बोझ" का नाम देना उसे 

मुझे पता है कभी कभी यह बोझ तेरी आंखें नम कर देता है 

पर यह आँखों का पानी तो उसी पहली बारिश मैं घांस पर बिछे वह मोती ही तो है ना, 

जो आसमान मैं आये उस इंद्रधनुष से क्षितिज में मिल जाने की चाह रखते हैं

अरे ओ मंदबुद्धि 

तुझसे ज्यादा अमीर कौन होगा इस दुनिया में जो अपने दिल पर सुकून का बोझ लेकर चल रहा है

पर फिर भी तुझे उसे बोझ ही समझना है उसे तो "सुकून के बोझ" का नाम देना उसे।


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