सुखद स्वप्न
सुखद स्वप्न
एक दिन हमारे स्वप्न में शिव जी भगवान आए
और बोले बेटा कुछ मांगे अपने लिए
मैंने कुछ हंसी मजाक में कह दिया
क्यों ना मिले हमारे पति को भी मातृत्व सुख
और बने हम उसके साक्षी
ईश्वर भी कुछ मुस्कुराए
और हंसकर तथास्तु बोलकर
आगे कदम बढ़ाए
अगली ही सुबह कुछ अचंभित कर गई
मेरे रोम-रोम को हंसी में भर गई
पति बोले आज उठने का नहीं करता दिल
कुछ दिल मचलता है
जैसे उल्टी और, चक्कर
कुछ अजीब सा हो चलता है
हमें भी पुरानी बातें कुछ याद आई
हम भी मन ही मन मुस्काए
और दिखा, नटखट सा चेहरा
बदला लेने के लिए होकर तैयार
बस यही कहते चले आए
छोड़ो जी यह है बहाने तुम्हारे काम पर न जाने के
क्या हम नहीं समझते
सुबह-सुबह अरे किसका दिल मीचलाता है
हिम्मत जुटाकर पति काम पर चले गए
और दिन बीते जब पेट बड़ा
हमरोज ही तंज कसते
कितना मोटे हो गए हैं आप
कुछ डाइटिंग या कुछ काम क्यों नहीं करते
प्रसव पीड़ा आते-आते
पति की हिम्मत ने जवाब दे दिया
और रो कर बोले
हमें दो छुटकारा इस आफत से
और जैसे ही हम उन्हें कुछ कहते
हमारा स्वप्न टूट गया
और बगल में सोते देखकर पतिदेव को
हमारा दिल हँस पड़ा
शिव जी हमारे सपने में आए।
