बचपन
बचपन
बचपन की वह मीठी सुनहरी यादें
कितना करते थे हम हर बात पर वादे
बचपन में सुनी थी दादी नानी की कहानी
मैं थी माँ की मीठी लोरी की दीवानी
बचपन में हँसने रोने के लिए न थी तहज़ीब
अब तो थोड़ा सा जोर से क्या बोलूं बन जाता है बदतमीज़
बचपन में टाइम की कोई नहीं था पाबंदी
अब तो हर काम के लिए टाइम की नही है आज़ादी
बचपन खेल-कूद और मनोरंजन का
अब तो लोगों का हर पल तनाव सा
बचपन में पिता की डांट से माँ के आंचल में छुप जाते थे
अब तो हर इंसान दूसरों के डांट सुनकर ही गुजारते
बचपन में ना थी चिंता ना फिक्र
अब तो हर पल संघर्ष का ही जिक्र
काश वो बचपन के पल फिर आते
हम भी सब के साथ फिर मुस्कुराते