कंगना
कंगना
तेरा कंगना खन खन करके मेरी नींद उड़ आती है
पर पता नहीं क्यों मुझे सुकून की आस जगाती है
तेरा कंगना खन खन करके सुबह की पहली किरण दिखाती है
पर पता नहीं कैसे दिन भर की सारी थकान खत्म हो जाती है
तेरा कंगना खन खन करके मीठी लोरी का एहसास दिलाती है
पर पता नहीं कैसे सपनों में भी तेरी याद सताती है
तेरा कंगना खन खन करके जीवन के गीत सुनाती है
पर पता नहीं कैसे सरगम की साथ बनाती है
तेरा कंगना खन खन करके मेरे दिल की धड़कन बढ़ाती है
पर पता नहीं कैसे मुझे खुशियों का एहसास जगाती है
तेरा कंगना खन खन करके हमारे संगम की डोर सजाती है
पर पता नहीं कैसे तेरे ना होने पर भी तेरा होना महसूस कराती है।