बचपन और प्यार
बचपन और प्यार
बचपन का प्यार भी कितना
अजीब होता है साहब
बिना छल कपट के कितना
मासूम होता है वह प्यार साहब
नर्सरी क्लास की टीचर के मुस्कुराने पर प्यार आना
साथ में बैठे हुए दोस्त का खाना खिलाना
कॉपी में काम रह जाए तो किसी
दोस्त का साथ में काम कर देना
इनसे ही प्यार हो जाता है साहब
बचपन का प्यार भी कितना
अजीब होता है साहब
बर्थडे पर एक टॉफी मेरा दोस्त मुझे ज्यादा देगा
मेरे बिना वह खाना नहीं खाएगा
स्कूल जरूर जाना है क्योंकि
मेरे बिना वह पूरे दिन उदास हो जाएगा
इतना निश्चल प्रेम बस
बचपन में ही हो सकता है साहब
बचपन का प्यार भी कितना
अजीब होता है साहब
दोस्त मेरे लड़की है या लड़का
इस से कोई मतलब नहीं है मुझे
वह तो बस मेरे यार है
ऐसा लगता है उनके
बिना जिंदगी बेकार है
बचपन का भी प्यार
कितना अजीब होता है साहब
याद आता है वह बचपन और वह प्यार
जिनके बिना जिंदगी जीना दुश्वार
आज वह दोस्त ढूंढने से भी नहीं मिल पाते हैं
और यारों बस क्या करें
भूले ना वो दोस्त बुलाए जाते हैं
इसीलिए तो बचपन का प्यार भी
कितना अजीब होता है साहब
बिना छल कपट के कितना
मासूम होता है साहब।

