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संदीप सिंधवाल

Romance

4  

संदीप सिंधवाल

Romance

सुबह का प्यार

सुबह का प्यार

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सुबह का प्यार

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क्या बताऊं प्रिये मै उन पलों का एहसास

जब सुबह तुमसे पहले ही मै उठ जाता हूं

आधी उठती नींद तुम्हारी झूठी सी सही

रात का बासी प्यार फिर से ताजा पाता हूं।


तुम्हारा जवाब सिर्फ 'ऊं' में होता है प्रिये

जब एक गुदगुदी भर से तुम्हें जागता हूं 

तुम्हें सताने में भी एक प्यार छिपा मेरा

खिड़की के परदे जब धीरे से हटाता हूं।


सच पूछो कैसे संभाल पाता हूं खुद को

आंखें बंद ओठों पर मुस्कान देखता हूं

पलकें खोल के फिर बंद करना अदा है

सूरज की उगती किरण तुम पे देखता हूं।


चिड़ियों की चहचहाट के मीठे संगीत में

बेसुरे गले से गाने की कोशिश करता हूं

अनायास सी हंसी छूटती तुम्हारे लबों से

वो लम्हों को फोन की आंख में भरता हूं।


जीवन संगिनी तुम जीवन ज्योत हो प्रिये

बस इसी जन्म को सातों जैसा चाहता हूं

चाय के कप के आस पास है प्यार अपना

उस कप को मै ताउम्र सहेजना चाहता हूं।


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