स्त्री
स्त्री
स्त्री भगवान की सर्वश्रेष्ठ कृति
जो जन्म से ही जुड़ जाती है
दुनियाँ के बनाए रिश्तों से
और मरते वक्त तक
उसके साथ जुड़ी रहती है
एक पोटली की तरह।
कई बार वो लाख कोशिश
करती है उस पोटली को खोलने की
उससे पूरी तरह आज़ाद होने की
पर चाह कर भी नहीं हो पाती
आज़ाद उन रिश्तों से।
जब भी एक कदम उठाती है
उस पोटली को खोलने की
आज़ाद होने के लिए
उलझ जाते है उसके हाथों में
रिश्तों के मोह के धागे
कभी पति, कभी बच्चे तो
कभी जन्म देने वाले माता-पिता
की तस्वीर के रूप में।
और फिर उसी पोटली को
संजोती है बड़े प्यार से
उसमें अपना त्याग, समर्पण
और ममता को डालकर
उनको धागों का रूप देकर
उसे अच्छे से बांध लेती है
ताकि कोई गुंजाइश न रहे
उनके खुलने की।
और उसे लाद लेती है
सास के द्वारा दी हुई घर
की चाबी की तरह
अपने साड़ी के पल्लू से
उस पोटली को अपने
कंधों में रखकर
लादती रहती है जिंदगी भर।
आखिर में जब आते हैं
यमराज उसे लेने
उसकी रूह को
आज़ाद करने
इस दुनिया के
बनाए हुए रिश्तों से
ले जाते है उसको भी।
पर उस पोटली का भार
इतना होता है कि
उसकी रूह पर भी
उसका दवाब होता है
मगर अब उसे आदत
हो चुकी है उस पोटली की
तभी तो औरत मरने के बाद भी
नहीं छोड़ पाती
चिंता अपने परिवार की।