स्त्री, द शक्ति
स्त्री, द शक्ति
क्यों हर बार, बार बार
बिला वजह ताने हजार
छोटी है, नाटी है कर किया अस्वीकार
काली है, मोटी है कर किया बहिष्कार
कम पढ़ी तो है बेकार
उच्च शिक्षित, आत्मनिर्भर तो नहीं कोई संस्कार
क्यों हर बार, बार बार
होता यहां स्त्रीयों का तिरस्कार
कभी दहेज़, तो कभी हुई घरेलू हिंसा का शिकार
कभी सती प्रथा, कभी बाल विवाह तो कभी हुआ बलात्कार
क्यों हर बार, बार बार
तन मन में उसके सब करते प्रहार
मां बहन तो कभी पत्नी बेटी बन जिसने दिया सदा प्यार
क्या उस पावन भाव का है यही पुरुस्कार
सब सहना, चुप रहना नहीं कोई आसान
जब चाहे वो भी कर सकती पलट वार
पर सृष्टि ने की उसकी रचना ही कुछ इस प्रकार
रचती वो सृष्टि, पर करती नहीं वो संहार
दया भाव से भरी वो, है शक्ति का अवतार ।।
