सर्वश्रेष्ठ
सर्वश्रेष्ठ
सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।
ए धूल जमीं दर्पण पर है जिससे छवि तुझे मलीन दिखे।
मन मुकुर स्वच्छ कर लो अपनी हिय की दुर्बलता दूर करो।
फिर समरभूमि में टकराने वाला तुझसे है कोई वीर नहीं।
तू शूरवीर है धरती पर, बेजोड़ है तू तेरा जोड़ नहीं।
ऐ सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।
अपने अंदर की हीन भाव का त्याग तुम्हें करना होगा।
चल रहे जो अंतर्द्वंद्व हैं भीतर खुद स्वयं तुम्हें लड़ना होगा।
कमजोर मनोबल ही तेरा बन बैठा शत्रु विकट भारी।
उसको परास्त करके पहले फिर समरभूमि में बढ़ना होगा।
ऐ सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।।
भाग्य विधाता कोई नहीं तुम स्वयं भाग्य निर्माता हो।
बुद्धि विवेक के बल पर, पाखंड प्रपंच छल दूर तुम्हें करना होगा।
अज्ञान के तम को चीर, तुम्हें ज्ञान पुंज भरना होगा।
श्रद्धा और विश्वास के पथ पर पग सदा तुम्हें धरना होगा।
धीरज की डोर नहीं टूटे इस डोर को थामे रखना होगा।
ऐ सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।
लक्ष्य सामने सदा रहे ओझल होने ये न पाए।
जिज्ञासा सदा बनी रहे मन विचलित होने न पाए।
ध्यान सदा रखना इसका कि मन के जीते जीत होत है मन के हारे हार सदा।
जब तक मंजिल प्राप्त न हो, करना है विश्राम नहीं।
फिर कोई नहीं रोक पाएगा तुम्हें सफलता पाने से।
ऐ सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।
पूर्ण समर्पण भाव रहे निष्काम काम करते रहना।
ओछी सस्ती जनप्रियता को कभी लगाना नहीं गले।
इनसे सजग हमेशा रहना।
ए बाधाएं हैं जीवन की, भटकाने में महा प्रबल।
जरा सी चूक हुई तुमसे तो तुम्हें संभलने न देगी।
जीवन की पतवार सदा अपने कर में रखनी होगी।
जीवन के इस महायुद्ध में स्वयं उतर लड़ना होगा।
ऐ सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना, तुम क्यों इतने लाचार बने।
तुम क्यों इतने लाचार बने ।।
कवि व रचनाकार :श्रीराम बी यादव
शिक्षक बृहन्मुंबई महानगरपालिका
