सरहदें
सरहदें
क्या दो चाँद होते हैं तुम्हारे आसमान में
य़ा हमारे खेतों का रंग ,हरा नहीं होता
क्या दो शक्लें दिखती हैं, तुम्हारे आईने में
य़ा किसी की रातों का कोई, सहर नहीं होता
कुछ तो होगा जो अलग होगा, मुझमें और तुममें
कोई एक टुकडा सुबह, तुम्हारी ज़्यादा होगी
य़ा कम होगी शायद, हमारी कोई एक शाम
हाथों में टिक जाती होगी, तुम्हारे य़हां की रेत
य़ा हमारे झरनो का पानी, ज़्यादा मीठा होगा o
कुछ तो होगा जो अलग होगा, मुझमे और तुममे
वरना
यूँ ही नहीं बदलती सरहदें, सिर्फ रंगों के बदलने से,
तुम्हारी और हमारी किताबों के।