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निखिल कुमार अंजान

Tragedy

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निखिल कुमार अंजान

Tragedy

सरे राह बलात्कार होता है

सरे राह बलात्कार होता है

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सड़कों पर रोज़ बलात्कार होते हैं

हवस भरी निगाहों का शिकार होते हैं

राम के भेष मे रावण का किरदार होते हैं

निगाहों में सिर्फ अंगों के उभार होते हैं

न बहन का ख्याल आता है न बेटी का

माँ की उम्र की भी क्यों न हो

बस देह का नशा छा जाता है

छूने का भर सक प्रयास होता है


थोड़ा सोच तो भाई कहीं न कहीं

तेरी बहन बेटी माँ के साथ भी ऐसा होता है

तेरे जैसे और भी होंगे जिनका भी यही प्रयास होता है

अरे छोड़ न ले ले मज़े तेरा कौन सा कुछ खोता है

वो तो सिर्फ भोगने के लिए है

इसलिए तो उसका का जन्म होता है

सार्वजनिक वाहनों मे जब तू जबरदस्ती टच होता है

सोचना तेरे घर से भी किसी का शोषण होता है

पर तेरा क्या जाता है


तुझे तो बढ़ा मज़ा आता है

जब मज़े लेने की ख़ातिर तू किसी से सट जाता है

सामने तेरी बहन खड़ी हो कोई उसे सताता हो

चेहरे पर क्या भाव होगें वो देखना चाहता हूँ

भूखे भेड़िए से भी बदतर हो गया जो किरदार

उसको वापस इंसान के चोले मे समेटना चाहता हूँ

आज अंजान बन फिर सब भूलना चाहता हूँ....


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