STORYMIRROR

Dr. Vijay Laxmi

Children

4.7  

Dr. Vijay Laxmi

Children

सर्दी की शान निराली

सर्दी की शान निराली

1 min
45


सर्दी के आलम देखो भाई,

पशु-पक्षी की शामत आई।

कहां से पायें कोट रजाई, 

जा बैठे भट्टी, रामू हलवाई।


हवा चली है, ठंड बढ़ी है ,

कल कुल्लू में बर्फ पड़ी है।

शीत लहर बर्छी-भाले सी, 

कोहरा बरसे मोतीबूंद सी।


प्रकृति के हर रंग-ढंग देखते,

दादा-दादी थे ,अलाव सेंकते।

पापा-मम्मी लगाते, रूम हीटर,

दीदी-भैया हैं चलाते ब्लोअर।


भाभी गद्दा मैग्नेटिक बिछातीं,

जीजा जी जिम ,दौड़ लगाते।

नानी करतीं बैठ कपालभाती,

बुआ जा मन्दिर दीप जलातीं।


छूते पानी है कंपकंपी छूटती,

मुंह से बस सिहरन है फूटती।

काॅफी-चाय कैसी धूम मचाई,

सूरज खेल रहा छुपम-छुपाई।


सर्दी की अनुपम शान निराली,

धूप, आग की ताप बनी सहेली।

धुंधी नकाब लगा छुपे मामू चांद,  

चाँदनी सर्दी से छुपके, बैठी मांद।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Children