सफ़र
सफ़र
यह सफ़र अनोखा था
कितनी मंज़िले तय की तुमने
कितनी राहें मिली जो अपनी थी
कितनी राहें अभी भी बाकी हैं
एक बूँद भरी हैं सिर्फ मुट्ठी में
सारा समुंदर पीना अभी बाकी हैं
उड़ता पंछी हो तुम शायद
ये जहाँ तुम्हारा अपना हैं
ये सपना नहीं हक़ीक़त हैं
ये वक़्त तुम्हारा अपना हैं
कुछ लम्हें तुम्हारे साथ होंगे
कुछ बातें दिलों में बस जाएंगी
कितना जीया हैं तुमने हर इस पल को
उसकी बातें इक दिन हँसा जाएंगी।