सफर
सफर
बातें होती है मन ही मन इन रास्तों से रास्तों में
हमें रोक लेना पैर फिसलने से पहले किस्तों में,
कौन जाने कब कैसे गिर जाए हमें सम्भल लेना
है आप निस्वार्थ शामिल है जैसे मेरे फरिश्तों में॥
क्या है सफर के मायने जब आप न हो साथ में
लोग तो अपना लगते है चिकनी चुपड़ी बात में,
क्लेश है आपको फिर भी आंसू है छुप जाते
बेजान है पर जिन्दगी बनती है आपके हाथ में॥
शहर गाँव चमकती चहकती आपकी शोभा में
प्रगति की धारा उज्ज्वल है प्राकृतिक आभा में,
बारिशों में सुनसान भिंगते है अकेले अकेले यूँ
सब रुक जाते है अपनी जगह व सुरक्षित पते में॥
