सोचते ही रह जाते है
सोचते ही रह जाते है
जिंदगी की राहों पर चलते चलते ये कदम थम से जाते है,
तलाश करती रहती है ये नजरें किसी अपने को,
भीड़ तो कयामत की होती है पर वो अपना नहीं मिलता,
जाने दुनिया की किस भीड़ में तलाशे हम
उसको ये सोचते ही रह जाते है,
कहते है सब कि एक बार जो चला जाता है,
वो फिर कभी लौट कर नहीं आता,
जो रूठ कर हम से दूर होता है
उसके आने की उम्मीद तो हर पल रहती है,
माना दुनिया से जाने वाले नहीं लौटते,
कभी कभी सोचते है हम की
ये रूठने मनाने का सिलसिला है ही क्यों,
अपनों से भला कैसी नाराज़गी कैसा रूठना,
काश हर कोई रिश्तों को कपड़ों की तरह बदलने की ना सोचे,
तो दुनिया कितनी हसीन और खूबसूरत हो ये सोचते ही रह जाते है ।