सोचो जरा
सोचो जरा
कहाँ जा रहे हो ?
कहाँ ले जा रहे हो देश को ?
हे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ,
क्या भूले हो कर्तव्य तुम,
कभी चाय पर चर्चा,
कभी शोर मचाते वाद विवाद,
क्या भूल गए तुम अपनी बात,
तुम हो लोकतंत्र के एक आधार,
बनाना समाज बेमिसाल,
आरोप प्रत्यारोप की नीति,
क्या हो रही समाज की परिणीति,
सोचो एक पल तो जरा,
ठहरो एक पल तो जरा,
परोसो वह जो बदले समाज को,
बढ़ाए प्रेम सदभाव को,
कुछ तो सकारात्मकता लाओ,
समझने में एक पल और लगाओ।
