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सोच का फर्क

सोच का फर्क

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फर्क तो सिर्फ और सिर्फ सोच का ही है, वरना गलती का एहसास तो,

उन्हे भी हो जाता जिन्हे समझ आता है कि वो गलत हैं।


पर उस सोच, विचारधारा का क्या करें जिसने,

हर दूसरे इन्सान के दिल और मस्तिष्क पर अपना जाल बिछा रखा है।


कुछ नहीं, करना क्या है,

सच्चाई को थोड़ी जगह दीजिए, झूठ अपने आप चला जाएगा।


लालच को थोड़ा साइड कर दीजिए,

मदद अपने आप हो जाएगी।


प्यार को ज्यादा महसूस कीजिए,

अच्छाई अपने आप जाग जाएगी।


और एटीट्यूड को थोड़ा सा जेब में रख दीजिए,

सब कुछ अपने आप संभल जाएगा।


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