STORYMIRROR

Anchor Nehaa Gupta

Abstract

3  

Anchor Nehaa Gupta

Abstract

जीवन से मृत्यु के पार

जीवन से मृत्यु के पार

1 min
434

गुनगुनाना कुछ ऐसे कि

उस तक तेरी पुकार ज़रुर पहुँचे, 

बोलना कुछ ऐसे की उस तक

दिल की खामोशी ज़रुर पहुँचे।


पहुँचे जो सत्य हो,

जो प्रत्यक्ष हो, जो अथाह हो,

मन की सरज़मीं पर ना प्रथा हो,

नादानियाँ दिल की फितरत सी,

गलतियां दिमाग की ज़रूरत सी,

ज़रूरतों में कहीं गुम ना जाना।


जीवन के सफर में

क्या पाना है ये समझ जाना। 

समझना वो जो सत्य हो,

जो अजय हो, अमर हो।


वो कहते हैं ना

तुम गलत समझ रहे हो,

क्योंकि समझकर भी हम

बहुत कुछ समझ नहीं पाते।


फिर कहते हैं रिश्ते चल नहीं पाते,

रिश्तों का क्या है कुछ कहते थोड़े ही हैं,

बस घुट घुटकर मर जातें हैं,

पर एहसास सच्चे हैं तो जी जाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract