संवेग
संवेग
संवेग है या सावन के बादल
पल पल उमड़ घुमड़ करते हैं
बरसते हैं गरजते हैं
मन को बोझिल करते हैं।
जो तैर कर नदी - दूरी की
आने को व्याकुल
पास तुम्हारे।
नदी के उस किनारे
ख़ामोशी का दरवाज़ा
नहीं जा पाई
मेरी रूह तुझ तक।
जो न कह पाई
तुम से
पल पल कहती रही
यूँ ही
कि जैसे सुन लोगे तुम