ये कौन सा देश है बाबू
ये कौन सा देश है बाबू
ये कौन सा देश है बाबू
जहाँ जनता की भूख को
धर्म के तेल में तला जाता है
जनता की बीमारी को
धर्म से सेंका जाता है
अगर यह धर्म होता
तो भी कुछ मलहम बनता
जैसे कहते हैं बुद्ध
अत्त दीपो भव
लेकिन पाखंडों और अंधविश्वासों
को धर्म की चाशनी में
इतना लपेटा गया कि धर्म मर
चुका है, और अधर्म की जय है
अध्यात्म और धर्म को गड्ड–मड्ड करने वाले
जानते हैं कि तस्वीर जो प्रस्तुत है
देश काल की
उसमें मर्यादा का छौंक है
और धर्म का नाम है
लेकिन अधर्म है यह..?
इसकी पहचान लुप्त है
दृष्टि लुप्त है
युगों तक पाखंडों को ढोने वाले समाज
में थोथा रह गया, सार बह गया
एक बार फ़िर आधुनिक इण्डिया में
राम मंदिर का शंखनाद गूंज रहा है
भूखी अतड़ियाँ और मन की
निराशाएँ लिए बेबस ऑंखें तटस्थ हैं
उन्होंने भी अपने दुःखों का भार
छोड़ दिया है राम पर
जो नहीं हैं राममय, हैं प्रबुद्ध जन
उनकी आवाज़ों को जेल की
सलाखों में ठेल दिया गया है
चस्पा कर दी गयी है
आतंक की पट्टी उनके माथे पर !!
वे चीखकर कहना चाहते हैं सच
और दीवारें पसीज जाती हैं
उनके दर्द के समंदर उन्हें ही मथते हैं
आलोक व्याकुल है अंधकार के आगोश में
सुरक्षा प्रहरी मौत के प्रहरी बन चुके हैं !!
