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Mithilesh kumari

Abstract

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Mithilesh kumari

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ख़ामोशी भी कोई भाषा है क्या ?

ख़ामोशी भी कोई भाषा है क्या ?

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ख़ामोशी की अपनी भाषा होती है

ख़ामोशी के अपने शब्द होते हैं!!

 

मेरी कविताओं में तुम्हें सुगंध मिलेगी

मेरे मन के खिलने की

ख़ामोशी में कहे वे शब्द मिलेंगे

जिसे सोचकर रह गयी

बुनकर सपने हंस पड़ी

तुम लिखना पाती हवाओं में

मैं पढ़ लूंगी मन तुम्हारा!!

 

कहना बहुत कुछ है लेकिन

कह पाती हूँ सिर्फ़ ख़ामोशी।

 

जब भी तुम आना चाहोगे

मेरी पांतियाँ लायेंगी मुझ तक

जब तुम तलाशोगे, तलाश लोगे 

कविताओं में बिखरी खुश्बू

को छूना, मुझे पा लोगे।


महक ही आदमी की पहचान होती है

महक हर चीज़ की जुदा होती है

प्रेम से रीतकर तुम प्रेम की सुगंध पहचान पाओगे

आना मेरे पास जब तुम्हारा मन हो जल सा पारदर्शी

मिट्टी की तरह सघन, हवा की तरह सरल

सहजता प्रेम की शर्त नहीं, अनिवार्य गुण है।


बदल जाएँ धड़कनें तुम्हारे हृदय की

मेरे नाम पे, बेचैनी मिलने की

सताने लगे, तो पुकारना मैं सुन लूंगी!!


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