ठोकरें
ठोकरें
ठोकरें जब भी लगती हैं
मुड़ जाती हूँ, अपना आपा
और, मजबूत करती हूँ
ठोकरें खाने के लिए
क्योंकि, ठोकरें ही तो
क़िस्मत में हैं
हँसी तो मैंने चुराई है ।।
ठोकरें जब भी लगती हैं
मुड़ जाती हूँ, अपना आपा
और, मजबूत करती हूँ
ठोकरें खाने के लिए
क्योंकि, ठोकरें ही तो
क़िस्मत में हैं
हँसी तो मैंने चुराई है ।।